श्री कृष्णा जी के वचन और सुविचार – Lord Krishna Vani Quotes in Hindi
जानिए श्री कृष्णा जी के कुछ अनमोल वचन, यहाँ दी गयी Lord Krishna जी के कुछ quotes को गीता से भी लिया गया है | इन विचार को image, status और wallpaper के रूप में उपयोग कर सकते हैं | श्रृष्टि के रचियता श्री कृष्णा जी हम सबो को अच्छे कर्म करने के लिए राह दिखने वाले देवता हैं | कृष्णा जी कान्हा नाम से भी जाने जाते हैं, जिन्होंने पापियों का सर्वनाश करने के लिए कई रूप भी धारण किये | भगवान् श्री कृष्ण एक मार्गदर्शक के रूप में है, जिनकी लीला अपरम्पार है | इस धरती में सभी प्राणियों को आगे बढ़ने के लिए किसी न किसी मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है , जिनके विचारों पर चलने से हम अपने जीवन में एक सफल व्यक्ति बन सकते हैं |
आज हम श्री कृष जी के वनियों में से कुछ krishna vani के बारे में बतलाने वाले हैं, जो आपको जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी | इसके साथ ही ये आपको मन की शांति भी प्रदना करेंगी | आप चाहे तो इन्हें wallpaper के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं क्यूंकि हम कृष्ण वाणी के साथ – साथ कुछ अनोखे wallpaper भी प्रदान करने वाले हैं, जो आपके computer या mobile के लिए बेहद खुबसुरत हो सकती है | चलिए कृष्ण जी के उन नेक विचारों को जानते हैं एवं समझते हैं की, वे क्या कह रहे हैं |
श्री कृष्णा जी के वचन | Lord Krishna Quotes
यहाँ दिए गए कई quotes और वचन गीता से लिए गए हैं जो की motivational होने के साथ life से जुडी अच्छी जानकारियाँ मिलती हैं:
जो मनुष्य मेरा स्मरण करने में अपना मन निरन्तर लगाए रखता है एवं शांत भाव से मेरा ध्यान करता है वो मुझे अवश्य ही प्राप्त करता है |
अथार्त: श्री कृष्ण जी कह रहे है की, जो व्यक्ति सच्चे मन से इश्वर की पूजा करता है, ध्यान लगता है, उनकी स्मरण करता है, इश्वर उसे अवश्य ही प्राप्त होते हैं एवं उन्हें इसका फल भी जरूर मिलता है |
मन शरीर का हिस्सा है, सुख दुख का एहसास करना आत्मा का नहीं, शरीर का काम है।
अथार्त: भगवान श्री कृष्णा बतलाते हैं की, आत्मा अमर है, उसे सुख और दुःख का एहसास नहीं होता है, बल्कि मन जो की शरीर का हिस्सा है उसे यह अहसास रहता है |
अपना दर्द कान्हा से बाँट लिया करो फिर दर्द जाने, दवा जाने, और कान्हा जाने।
अथार्त: अगर आप किसी तरह की परेशानी से गुजर रहे हैं, तो अपने दुःख इश्वर के साथ बाटने से आपका मन काफी हल्का हो जाता है एवं आप आछा महसूस करते हैं |
एक बुद्धिमान व्यक्ति न कभी जीवित के लिए शोक करता है और न ही मृत के लिए |
अथार्त: श्री कृष्ण जी के अनुसार जीवन मरन तो इस संसार का नियम है, ऐसे में हमें किसी के जन्म लेने या मरने से शोक नहीं मानाना चाहिए एवं उसके लिए ज्यादा दुखी नहीं होना चाहिए |
मन शरीर का हिस्सा है, सुख दुख का एहसास करना आत्मा का नहीं, शरीर का काम है।
अथार्त: हमें इस बात को समझाना चाहिए की मन इस शरीर का एक हिस्सा है जो की सुख और दुख का अहसास कर सकता है, परन्तु यह काम आत्मा का नहीं है |
मुझे क्या परवाह जमाना क्या कहता हैं मुझे ये पता हैं की कान्हा मुझे अपना कहता हैं।
अथार्त: एक व्यक्ति जब किसी सच्चे मार्ग पर चलता है, तो उसे काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, और दुनिया वाले चाहे जो भी कहे हमें इश्वर पर भरोसा करके आगे बढ़ते रहना चाहिए |
जो लोग भक्ति में श्रद्धा नहीं रखते, वे मुझे प्राप्त नहीं कर पाते | अतः वे इस भौतिक जगत् में जन्म-मृत्यु के मार्ग पर वापस आते रहते हैं |
अथार्त: जो भी भगवान् पर भरोषा नहीं करते हैं वे कभी भी भगवान् के बारे में नहीं समझ पाएँगे, और वह जन्म-मृत्यु के चक्र में फसे रहेंगे |
शरीर त्यागते समय मनुष्य जिस-जिस भाव का स्मरण करता है, वह उस उस भाव को निश्चित रूप से प्राप्त होता है |
अथार्त: मृत्यु के समय हम जिन भावों का स्मरण करते हैं, हमें अगले जन्म में उसी रूप या भाव को प्राप्त करता है |
जो इंसान जो भौतिक वस्तुओं की इच्छा रखता है वह कभी शांत नहीं होता |
अथार्त: हम अगर किसी चीज या धन के पीछे लालच करते हैं, तो हम कभी शांत से नहीं रह पाते हैं |
जीवन में सुख-दुःख, लाभ-हानि और विजय-पराजय को समान समझकर अपने कर्तव्य करने चाहिए, इससे आपको अपना कर्तव्य करने से कभी पाप नहीं लगेगा |
अथार्त: हमें अपने जीवन में अपने कर्म के प्रति कभी पीछे नहीं हटना चाहिए, जो हमारा कर्तव्य है, उसे अवश्य ही करना चाहिए |
आत्मा पुराने शरीर को वैसे ही छोड़ देती है, जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को उतार कर नए कपड़े धारण कर लेता है।.
अथार्त: जैसे हम अपने पुराने कपडे बदलते हैं उसी तरह आत्मा भी, एक शरीर से अलग होकर दुसरे शरीर में प्रवेश करती है, यही श्रृष्टि का नियम है |
एक योद्धा को अपने कर्तव्य को ध्यान में रखते हुए कभी डगमगाना नहीं चाहिए क्यूंकि, एक योद्धा के लिए युद्ध से बढ़कर कुछ भी शुभ नहीं होता |
अथार्त: एक सच्चे योद्धा के लिए उसका सब कुछ उसका युद्ध होता है, जिसे किसी भी परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए |
जिस तरह पुराने वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्र धारण करते हैं ठीक उसी प्रकार, जीव या जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर नए शरीरों को प्राप्त हो जाते हैं |
अथार्त: आत्मा अमर है, वह ना तो मरती है और ना ही जन्म लेती है, वह केवल शरीर को अपने कर्मो के अनुसार बदलती है, ठीक वैसे ही जैसे कोई पुराने कपडे को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है |
एक मनुष्य को अपने स्वयं के अहंकार एवं फायदे के लिए कभी दुसरे मनुष्यों को नुकशान नहीं पहुँचाना चाहिए |
अथार्त: हमे कभी भी अपने दौलत या अपने शौहरत पर घमंड करके दुसरे को निचा नहीं दिखाना चाहिए और ना ही किसी को नुक्सान |
जिस मनुष्य का मन दु:ख से विचलित नहीं होता है, जो सुख की लालसा नहीं करता है, और जो राग, भय और क्रोध से पूरी तरह मुक्त है, उसे स्थिर बुद्धि का प्रबुद्ध संत कहा जाता है |
अथार्त: हमें अपने आप को सयंम बनाना चाहिए और साथ ही लालच से दूर रहना चाहिए | जो मनुष्य अपने इन्द्रियों को शांत और इस्थिर रखता है वह एक बुद्धिमान मनुस्य है |
आप उनके लिए शोक क्यूँ करते हैं जो दु: ख के योग्य ही नहीं हैं, क्यूंकि एक बुद्धिमान व्यक्ति न तो किसी जीवित के लिए शोक करता है और न ही किसी मृत के लिए |
अथार्त: जब कोई व्यक्ति मर जाता है, तो उसके बाद हम उनके लिए जो शोक मनाते हैं वो तो उसका भाग नहीं होता है, फिर ऐसे में हम उनके लिए क्यूँ शोक मनाये | एक सच्चा मनुष्य कभी किसी के मरने पर दुखी नहीं होता है |
जो यह समझता है की, आत्मा मरती है वो अज्ञानी है क्यूंकि आत्मा आत्मा न तो मारता है और न ही मारा जाता है |
अथार्त: आत्मा न ही कभी मरती है और न ही किसी को कभी मारती है, ऐसे में अगर कोई ऐसा सोचता है तो वो मुर्ख है |
बिना स्वार्थ के एवं बिना फल के लालसा के किये गए सर्वोत्तम कार्य कर्म-योग या सेवा कहलाता है |
अथार्त: बिना अपने फायदे के किसी की मदद करना या दान करना ही सच्ची सेवा कहलाती है |
जिंदगी के इस रण में खुद ही कृष्ण, खुद ही अर्जुन बनना पड़ता है रोज अपना ही सारथी बनकर जीवन के महाभारत से लड़ना पड़ता है।
अथार्त: हमारे आम जीवन में कई कठिनाइयाँ आती है, ऐसे में हमें खुद ही उसका हल निकालना चाहिए एवं उससे निकलना चाहिए क्यूंकि, आपकी हर छोटी बड़ी समस्या के लिए इश्वर नहीं आ सकते, आपको अपना कार्य खुद ही करना पड़ेगा |
आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा में मिल जाना होता है।
अथार्त: इस जन्म-मृत्यु के चक्र से निकलने का आत्मा का एक ही लक्ष्य होता है की वह परमात्मा से जा कर मिल सके|